भारत में कानून बनने के बाद भी दहेज लेना पाप नहीं मानते लोग...जानिए आज भी क्यों जारी है दहेज प्रथा ?

Savan Kumar
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आज के दौर में उपहार, प्रथा और सम्मान के नाम पर दहेज लिया जाता है और लोग खुद को आश्वस्त करते हैं कि उन्होंने दहेज नहीं लिया है, लेकिन यह नया अध्ययन विस्तार से बताता है और कहता है कि भारत भले ही चंद्रमा और मंगल की कक्षा में पहुंच गया हो, लेकिन इसकी जड़ें आज भी दहेज प्रथा की परंपरा से जुड़ी हुई हैं और इसीलिए आज हम आपके साथ इस पर चर्चा करना चाहते हैं।

विश्व बैंक द्वारा 1960 से 2008 तक ग्रामीण भारत में 40 हजार विवाहों पर यह अध्ययन किया गया है और कहा गया है कि भारत में दहेज प्रथा आज भी जारी है। फर्क सिर्फ इतना है कि आज दहेज के नाम पर दहेज नहीं लिया जाता है। कुछ लोग दहेज को उपहार कहना पसंद करते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वे दहेज नहीं ले रहे हैं, लेकिन ये समाज के रिवाज हैं। और कुछ लोग कहते हैं कि हमें दहेज नहीं चाहिए, बस अपने रिश्तेदारों का सम्मान करना न भूलें।

भारत में पहली बार 1961 में दहेज को लेकर कानून बनाया गया और उसे अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया, लेकिन विडंबना यह है कि इसके खिलाफ कानून बनने के बाद भी दहेज प्रथा बंद नहीं हुई। भारत में 1960 से 2008 तक के इस अध्ययन में पाया गया कि 95 प्रतिशत शादियों में दहेज दिया जाता है। यानी भारत में हर 100 में से 95 शादियों में दहेज प्रथा की प्रथा है।

इस अध्ययन में दहेज की कीमत का भी पूरा आकलन किया गया है। इसके अनुसार वर्ष 1960 में भारत के गांवों में दहेज का औसत खर्च 18 हजार रुपए था, जो 1972 में बढ़कर 26 हजार रुपए हो गया और फिर 2008 तक यह खर्च 38 हजार तक पहुंच गया। इसी स्टडी में बताया गया है कि भारत में शादियों में वैसे तो दोनों तरफ से लेन-देन होता है, लेकिन गिफ्ट के नाम पर दुल्हन के मां-बाप का खर्चा दूल्हे के परिवार से कहीं ज्यादा होता है।

अध्ययन में पाया गया कि जहां दूल्हे का परिवार दुल्हन के परिवार को औसतन 5,000 रुपये का उपहार देता है, वहीं दुल्हन के परिवार द्वारा दिए गए उपहारों की राशि सात गुना है। यानी करीब 32 हजार रुपये...

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 2007 में, भारत के गांवों में कुल दहेज वार्षिक घरेलू आय का 14% था। यानी एक परिवार की सालाना आमदनी का 14 फीसदी दहेज देने में खर्च हो जाता है और इससे यह साफ हो जाता है कि आज भी भारत में किसी भी परिवार के लिए सबसे बड़ा खर्च बेटी की शादी में दूल्हे के परिवार को दहेज देना होता है, और इसके लिए भारत में लोग जीवन भर अपनी जमा राशि जमा करते हैं।

हालांकि, ऐसा नहीं है कि दहेज प्रथा केवल हिंदू धर्म में ही मजबूत है। दहेज प्रथा इस्लाम, सिख और ईसाई धर्म में भी प्रचलित है। हिंदू धर्म और इस्लाम में दहेज की औसत लागत लगभग बराबर है, जबकि सिख धर्म और ईसाई धर्म में दहेज की लागत बहुत अधिक है। 2008 में सिख धर्म में दहेज का औसत खर्च 52 हजार रुपये और ईसाई धर्म में 48 हजार रुपये था।

यहां समझने वाली बात यह है कि वर्ष 1960 में इन धर्मों में दहेज का यह खर्च हिंदू धर्म और इस्लाम के बराबर था। इसके अलावा भारत में दहेज में भी जातियों का प्रभाव दिखाई देता है। जहां ऊंची जाति के लोग दहेज पर ज्यादा पैसा खर्च करते हैं, वहीं एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय के लोग दहेज पर उतना पैसा खर्च नहीं करते।

 

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