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हाल ही में लोकसभा चुनावों में वो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पाटी तृणमुल कांग्रेस में शामिल हुई और बशीरहाट लोकसभा क्षेत्र से उन्हें टिकट मिला और वो चुनाव जीतकर आयी। हालाकि चुनाव कैंपेन के दौरान भी उनको लेकर काफी विवाद हुए।
नुसरत जहां एक
ऐसा नाम... जो बंगाल के लोगों के दिलों पर राज करता है। इस नाम की लोकसभा चुनाव के
दौरान भी काफी चर्चा रही, वही अब संसद में आने के बाद एक बार फिर सुर्खियों में
है।
8 जनवरी
1990 को पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के एक मुस्लिम परिवार में जन्मी नुसरत
जहां एक प्रसिद्ध बंगाली अभिनेत्री है। उनका पुरा नाम नुसरत जंहान रूही है। करीब
20 से अधिक बंगाली फिल्मों में काम कर चुकी नुसरत 2010 का फेयर वन मिस कोलकाता का
खिताब जीत चुकी है।

लेकिन उन्होनें बीजेपी उम्मीदवार सायंतन बसु को करीब साढे तीन लाख से अधिक वोटों से हराया। नुसरत को कुल 7,82,078 वोट मिले थे। ये वोट कुल वोटिंग पर्सेंटेज के 56 फीसद थे। भाजपा के प्रत्याशी सायंतन बसु को 4,31,709 वोट मिले थे।
लोकसभा चुनावों में जीत के बाद
उन्होनें शादी कर ली। तुर्की के बोडरम शहर में
बांग्ला सिनेमा की अभिनेत्री नुसरत जहां ने अपने प्रेमी व कोलकाता के मशहूर बिजनेसमैन
निखिल जैन संग सात फेरे लिए। शादी हिंदू रीति रिवाज से हुई। लेकिन कुछ धर्म के
ठेकेदारों को ये पंसद नही आया। इसको लेकर भी विवाद शुरू हो गया।
शादी करने के बाद वो
वापस भारत पहुंची और और दुसरे ही दिन लोकसभा में सांसद पद की शपथ लेने पहुंच गई।
जब नुसरत संसद में पहुंची तो उनके माथे पर सिंदूर लगा था। और उनका परिवेश हिन्दुओं
के रीति रिवाज के अनुसार था। बस फिर क्या था लोग शुरू हो गयें और नुसरत के कपड़ों, सिंदूर
और मंगलसूत्र को लेकर उन्हें ट्रोल करने लगे। देवबंद के
मुस्लिम धर्मगुरूओं ने उन पर फतवा जारी कर दिया।
हालाकि उनको अपनी घनिष्ठ दोस्त मिमी चक्रवर्ती
ने पुरा समर्थन दिया और कहा कि मैंने नुसरत का समर्थन किया है। अपनी दोस्त का
समर्थन करती रहूंगी। चाहे वह संदूर लगाएं या चूड़ियां पहनें। हर किसी को एक दूसरे
की निजी जिंदगी का सम्मान करना चाहिए। हमें तो जींस पहनने के लिए भी ट्रॉल किया
गया था। महिलाओं का सम्मान किया जाना चाहिए।
सवाल ये है कि
हमारा समाज अब ये देखकर तय करेगा कि वो किसी धर्म की है और उसे वही करना चाहिए जो
उसका धर्म और समाज कहें। या सिर्फ इसलिए की वो मुस्लिम है, अब ये सवाल उठाना लाजमी
है कि जायरा वसीम की तरह ही नुसरत जहांन को भी सिनेमा इंडस्ट्री को छोड देना
चाहिए।
जायरा वसीम ने जो फेसबुक पोस्ट पर लिखा उसे
थोडें देर के लिए सच मान भी लिया जाए तो क्या वाकई मुस्लिम महिलाओं का अब फिल्म
इंडस्ट्री में आने के सपने देखना छोड़ देना चाहिए, और ऐसे ही धर्म के ठेकेदारों के
लिए उनकी बात मनवाने और सच बताने के मौके देते रहने चाहिए।


जायरा वसीम पर
दबाव था ये तो बार-बार उन पर आती टिप्पणीयां
ही साफ कर देती है लेकिन उन्होनें जो कारण बताया वो कितना सच है, इस पर
मुस्लिम धर्मगुरूओं को विचार करना चाहिए। शायद यही कारण है कि कुछ सियासत करने
वाले और धर्म की आड में अपना धंधा चलाने वाले इस में मुस्लिमों को आगे बढ़ना देना
ही नही चाहते..क्योकि उनको अपने धर्म और समाज से ज्यादा अपने धंधे की चिंता है।
लेकिन आज
इस्माम धर्म के विद्वानों को एक मंच पर आकर बैठकर इन विषयों पर चर्चा करनी चाहिए।
की इस्लाम क्या चीज करने की इजाजत देता है और क्या करने की नही,
कुछ सियासत
जनों को भी इस पर बैठकर बातचीत करनी चाहिए कि इस देश मे लोकतंत्र केवल राजनेताओ के
लिए ही नही आम आदमी के लिए भी है उन्हें अपनी जिदंगी सबकुछ अपनी मर्जी का करने का
हक है। वो लडकी भी वो सबकुछ कर सकती है जो वो करना चाहे।
कब तक हम समाज
के ठेकेदारों से मिलने वाली धमकियों के सहारे डरकर जीते रहेगें। लोगों को अपने हक
की लडाई खुद लडनी पडेगी। ना तो नेता कभी काम आने वाले है ना ये धर्म गुरू.....