देश में #आरक्षण की बात हो या #लोकतंत्र को बनाये रखनें की सरकारें वोट बैंक के खेल में सिर्फ अपना हित साधने में लगी रहती है,
भले ही राजनीति दल इसे ना माने लेकिन ये सच्चाई है, पार्टियों और नेताओं के लिए यह खेल
कभी हिन्दू ,कभी मुस्लिम,
कभी मंदिर, कभी मस्जिद
कभी हिंसा-अहिंसा
इस सबके बीच में खेला जाता है...
कमाल की बात तो यह भी है कि नेता दिखावट के लिए उसी तरफ हमेशा खडे़ होते है, जिस तरफ पल़डा कमज़ोर होता है
जब भी संविधान पर बात होती है तो कहा जाता है कि संविधान मे दखल बर्दाश्त नही..
तो अब देश में क्या हो रहा है?
कोई जबाव देगा..
किसे दिखाई नही देता..आखिर कब तक आम आदमी अपनी आखों पर काली पट्टी बांधकर बैठा रहेगा। वो कब तक इस सबको बर्दाश्त करेगा।
जब बिना देखें फिल्म का विरोध प्रदर्शन किया गया तो सबने एक सुर में फिल्म का विरोध किया, तब किसी ने जाति देखकर समर्थन नही किया।
लेकिन यहां तो जो हो रहा है सबकुछ सामने है,
यहां तक मीडिया ने भी एक हद तक फिल्म को बैन करने को लेकर विरोध का समर्थन किया।
तो क्या अब भी चुप रहें। नहीं ,अब आम आदमी चुप नही रह सकता।
आज जब बात SC & ST एक्ट में बदलाव की है तो सब एक साथ क्यूँ नही खडे़ है।
इसके कई विकल्प तराशे जा सकतें है,
कोई झुठा केस करें तो उसे फांसी की सजा दो किसने रोका हैं।
लेकिन सच्चाई तो यह है कि आप आरक्षण जैसे सामाजिक मुद्दों पर दलितों और आदिवासियों को परखना चाहते है , जो देश के गरीब को संविधान ने दिया है
सभांवना कई सारी है लेकिन कोई विकल्प तो तराशे,
आप तो केवल सीधा वार करना चाहते है। जो आम आदमी कभी नही सह सकता है।
…
जब इतिहास से छेड़छाड़ बर्दाश्त नही तो सविधान से क्यों बर्दाश्त करेगा आम आदमी,
रही बात सुप्रीम कोर्ट के सम्मान पर हमें ज्ञान देने वालों की
तो हम हर व्यक्ति और कोर्ट का पुरा सम्मान करते हुए ही इसका विरोध कर रहे हैं,
लेकिन ज्ञान पैलने वाले बताए जब पद्मावती फिल्म पर सुप्रीम कोर्ट ने इसे सभी राज्यों में फिल्म रिलीज के लिए कहा था तब कहां था उच्चतम न्यायालय का सम्मान ।
क्यों नही माना फैसले को..
इसलिए सबको एक दुसरे का समर्थन की जरूरत होती है। तभी मजबूत संगठन का निर्माण होगा और उसी से हमारा ं लोकतंत्र मजबूत बनेगा।
#भारत_बंद