एक व्यक्ति जो बचपन में मांगता था भीख , आज है 50 करोड़ की कंपनी का मालिक

Bhawana Singh
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जीवन एक रोड की तरह है , कभी ये हाईवे बन जाती है और हमारी गाड़ी पूरी गति से भागती है। कभी रोड टूटी फूटी होती है और हमें गाड़ी को धीरे करके उस जग़ह से बचकर निकलना पड़ता है। जो भी व्यक्ति धैर्य बनाएं रखकर इस रोड पर चलता रहता है और इन टूटे फूटे रास्तों को आराम से बिना एक्सीडेंट हुए पार कर पाता है वो अपनी मंजिल तक पहुँच जाता है। जीवन की इस रोड पर चलना और मंजिल दूर है, रास्ता कठिन है, ये सब देखकर भी हार न मानने से ही लोग सफ़ल होते है और ऐसे ही एक व्यक्ति के बारे में आज हम आपको बताएंगे। नाम है रेणुका आराध्या।


रेणुका आराध्या एक ऐसे व्यक्ति है जो एक समय पर गलियों में भीख मांगने को विवश थे लेकिन आज उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम पर 50 करोड़ की कंपनी खड़ी कर दी है। उनकी सफलता का यह सफर उतार चढ़ाव से भरपूर रहा, पर इनकी लग्न , कभी न हार मानने की ज़िद और मेहनत ने इन्हें आज इतना कामयाब बना दिया है। 50 साल के रेणुका आराध्या ने इस बात को सबित कर दिखाया है कि सफलता उन्ही को मिलती है जिनके हौसलों में जान होती है। जिस व्यक्ति के पास ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए एक सोच होती है और अपने सपने को पूरा कर सके ऐसा पक्का इरादा हो और हार न मानने वाला संकल्प हो तो उसे कोई नहीं रोक सकता ।


रेणुका आराध्या का बचपन बेहद अभाव में बिता, एक समय था जब वे अपने पिता के साथ गांव-गांव गली-गली जाकर भीख मांगते थे ताकि उन्हें खाना मिल सके। रेणुका बेंगलुरु के पास स्थित एक छोटे से गावं के रहने वाले हैं। उनका जन्म एक गरीब पुजारी परिवार में हुआ था और उनका बचपन बेहद गरीबी में गुजरा। बचपन से ही उन्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। रेणुका के घर की स्थिति बेहद खराब थी। उन्हें अपनी शिक्षा के लिए भी दूसरों के घर में नौकर की तरह काम करना पड़ता था। लेकिन किसी तरह इन्होंने दसवीं तक की पढ़ाई पूरी की। जिसके बाद वो एक बूढ़े अनाथ व्यक्ति के घर में रहकर उसकी सेवा करते, उसे नहलाते धुलाते , मलहम इत्यादि लगाते। बजुर्ग की सेवा करने के साथ ही वो पास के ही मंदिर में पूजारी के रूप में काम किया करते थे। उन्होंने वहीं करीब एक साल तक काम किया।

रेणुका को पढ़ना था इसलिए उन्होंने शहर आने का निश्चय किया। उनके पिता ने उनका दाखिला एक आश्रम में कराया। लेकिन परेशानी ये थी कि उस आश्रम में सिर्फ दो बार सुबह के समय 8 बजे और शाम के समय 8 बजे ही खाना खाने को मिलता था। जिसके कारण रेणुका पूरा दिन भूखा रहते थे और ढंग से पढ़ाई भी नहीं कर पाते थे बाद में वो फेल भी हो गए और उन्हें घर वापस आना पड़ा। घर वापस आने के कुछ समय बाद रेणुका के पिता की मृत्यु हो गई और घर की सारी जिम्मेदारी रेणुका पर आ गई। उन्होंने घर चलाने के लिए काम ढूंढना शूरू किया लेकिन कहीं काम नहीं मिला। काफी कोशिश के बाद उन्हें एक फैक्ट्री में नौकरी मिली और उन्होंने वहां एक साल तक काम किया।

इसके बाद रेणुका ने और फैक्ट्रीज में भी काम किया , इस तरह दिन-ब-दिन उन्हें कारोबार का अनुभव होने लगा और बाद में उन्होंने खुद एक ऐसे धंधे की शुरुआत की जिससे वह गरीबी से उबर सके। उन्होंने अपनी पत्नी की सहायता से पहले सूटकेस कवर का व्यापार शुरू किया , उनकी पत्नी कवर्स सिला करती थी और वे उन्हें बेचने जाते थे पर ये व्यपार नहीं चल न सका और रेणुका के 3 लाख रुपए डूब गए। जिसके बाद फिर से रेणुका सिक्योरिटी गार्ड के रूप में काम करने लगे लेकिन रेणुका को कुछ बड़ा करना था, उनमें बहुत ललक थी। इसी के चलते एक दिन रेणुका ने रिस्क लिया और यह नौकरी भी छोड़ दी और ड्राइविंग सीखना शुरू किया।

ड्राइविंग के काम के लिए उन्होंने लोगों से पैसे उधार लिए पर इस बार भी किस्मत ने उन्हें धोखा दे दिया और उनके हाथों से एक एक्सीडेंट हो गया। लेकिन इस बार भी रेणुका ने हार नही मानी और दिन-रात ड्राइविंग की प्रैक्टिस करने लगे जिसकी वजह से उन्हें अच्छी ड्राइविंग आ गयी और वो एक सफल ड्राइवर बन गए । कुछ दिनों बाद रेणुका उपाध्याय ने एक ट्रेवल एजेंसी  ज्वाइन की और वहां ड्राइवर बन गए। इस ट्रेवल एजेंसी में वह विदेशी पर्यटकों को घुमाने का काम करते थे जिससे उन्हें अच्छी टिप्स भी मिल जाया करती थी।

करीब 4 साल तक ड्राइवर बने रहने के बाद उन्होंने खुद की एक ट्रेवल कंपनी खोलने का विचार किया। उन्होंने अपने पूरे जीवन की कमाई और बैंक से कुछ मदद लेकर अपनी पहली कार खरीदी और प्रवासी कैब्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से एक कंपनी की शुरुआत की। इस कार को एक साल चलाने के बाद उन्हें जो फ़ायदा हुआ उससे उन्होंने दूसरी कार भी ख़रीद ली। उसी समय उन्हें पता लगा कि एक कैब कंपनी की स्थिति खराब चल रही थी और खराब स्थिति के चलते अपने बिज़नेस को बेचना चाहती है। तब रेणुका अराध्या ने करीब 6 लाख मे उस कंपनी को खरीद कर एक बहुत बड़ा रिस्क लिया।

कंपनी के पास करीब 35 कैब थी और कंपनी लॉस में थी। रेणुका ने अपना सब कुछ दाव पर लगा के एक डूबती कंपनी को खरीद कर बहुत बड़ा रिस्क लिया था लेकिन कुछ अलग करना , रिस्क लेना यही उनकी वक्तित्व था और सफ़ल होने की जिद भी थी। इस ज़िद की वज़ह से उन्होंने एक डूबती कंपनी को इतना सफ़ल बनाया। रेणुका की कंपनी को तब ऊँचाल मिला जब अमेज़न इंडिया ने खुद को प्रमोशन के लिए प्रवासी कैब्स को चुना। धीरे-धीरे वॉलमार्ट, जनरल मोटर जैसे बड़ी-बड़ी कंपनियां रेणुका अराध्या के साथ काम करने लगी और वक्त बीतने के साथ उनकी कंपनी का टर्नओवर 40 करोड़ के पार हो गया।
 
आज रेणुका की कम्पनी में डेढ़ सौ से भी ज्यादा लोगों को रोजगार मिला है। रेणुका महिला सशक्तिकरण के मद्देनजर महिलाओं को ड्राइवर बनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और उन्हें खुद की कार खरीदने के लिए 50 हजार की मदद भी करते हैं। रेणुका आराध्या की सफलता की कहानी सभी के लिए प्रेरक है। उनकी यह कहानी हर किसी को सिखाती है कि सक्सेस का कोई शॉर्ट कट नहीं है। आपको सफलता के लिए असफलता को भी स्वीकार करना पड़ेगा। सफ़ल होने के लिए कभी न हार मानने वाली ललक , रिस्क लेने का जज़्बा और मेहनत बहुत आवश्यक है।


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