क्या है धर्म का वास्तविक अर्थ और अखिर क्या कहता है सनातन धर्म ?

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महाभारत में लिखा है कि धर्मो रक्षति रक्षतः ,अर्थात मनुष्य धर्म की रक्षा करे तो धर्म भी उसकी रक्षा करता है। धर्म है क्या? धर्म का वास्तविक अर्थ होता है दायित्व। मनुष्य के लिए उसका कर्तव्य वहन ही, असली धर्म है। धर्म के पथ पर चलने का आशय ईश्वर द्वारा बनाए गए नियमों के पालन से है, मनुष्य के स्वभाव में धर्म होना ही उसकी विजय का मार्ग है।


समय के साथ मनुष्य ने धर्म को जाति, कुल और गोत्र से जोड़ना शुरू कर दिया और धर्म का वास्तविक अर्थ ही बदल गया। विविध गर्न्थो में धर्म का बस एक स्वरूप बताया गया है, इनमें धर्म को भगवान द्वारा बनाए गए नियम बताया है।

इस दृष्टिकोण से सनातन धर्म ही वास्तविक धर्म है। सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो। जिन बातों में वास्तविकता होती है वही सनातन कही गई है। जैसे सत्य सनातन है। ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य है।

जिस प्रकार आत्मा अमर है, वैसे ही सनातन धर्म भी अंनत है। सनातन धर्म मे 4 सम्प्रदाय होते है और कही कही इसमे 5 सम्प्रदाय होने का उल्लेख है। सम्प्रदाय और धर्म में भेद होता है, धर्म का तात्पर्य मनुष्य के व्यवहार, उसके दायित्व और ईश्वर द्वारा निर्मित कर्तव्य नियम से है। वही सम्प्रदाय का अर्थ मनुष्य के विश्वास से है।

मनुष्य मोक्ष और ईश्वर की प्राप्ति के लिए जिस भी मत का चयन करता है और जिस भी सम्प्रदायिक मार्ग पर चलके ईश्वर तक पहुँचने के लिए योग करता है। वह उसका सम्प्रदाय होता है।


सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि हैं औऱ इसके 5 सम्प्रदाय इन्हीं का स्वश्वत महत्व मानते है।

• वैष्णव सम्प्रदाय

भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने वाले भक्त इस सम्प्रदाय में आते है। भगवान विष्णु के कुल 24 अवतार थे, जिसमें से दशावतार का जिक्र अधिकतर होता है। परशुराम , राम , कृष्ण , और बुद्ध भी भगवान विष्णु के ही अवतार थे।

सनातन धर्म की विभिन्न पुष्तक जैसे ईश्वर संहिता, विष्णु संहिता, रामायण, महाभारत, इत्यादि में वैष्णव विचार धारा का वर्णन किया गया है। वैष्णव सम्प्रदाय के अंतर्गत 4 और सम्प्रदाय आते है जिनके नाम श्री सम्प्रदाय, ब्रह्म सम्प्रदाय, रुद्र सम्प्रदाय और कुमार सम्प्रदाय है। इनके अतिरिक्त इसमें कुछ उपसम्प्रदाय भी है। अधिकांश वैष्णव, भगवान राम और श्री कृष्णा की ही आराधना में लीन है। भारत में वैष्णव सम्प्रदाय के अनेक तीर्थस्थल भी है, जिसमें मुख्यतः जगन्नाथपुरी,खाटूश्यामजी, बद्रीनाथ, तिरुपति बालाजी, द्वारका, मथुरा और राम जन्मभूमि अयोध्या है।

•शेव सम्प्रदाय 

भगवान शिव में विश्वास रखने वाले और शिव भक्ति करने वाले लोग इस सम्प्रदाय में आते है। इस सम्प्रदाय में आत्मा और आत्म सुद्धि ही सर्वोपरि मानी जाती है, शंकर, महादेव, शिव और भोलेनाथ नामों से जाने जाने वाले रुद्र ही सभी 12 रुद्रो में प्रमुख है। मान्यता है कि भगवान शिव और उनकी पत्नी शक्ति, कैलाश पर्वत पर रहते है। वारणशी शहर को भी शिव और शक्ति ने ही बनाया था।

शिव पुराण, स्वेतास्वतरा उपनिषद और आगम इस सम्प्रदाय के प्रमुख ग्रंथ है। इन गर्न्थो में ही विभिन्न शिव अवतारों का जिक्र है जैसे कि महाकाल, तारा, भुवनेश, भैरव, आदि।
शेव सम्प्रदाय के प्रमुख तीर्थस्थल, केदारनाथ, अमरनाथ, रामेश्वरम, कैलाश मानसरोवर, सोमनाथ, 12 ज्योतिलिंग है।

• शाक्त सम्प्रदाय 

देवी पार्वती और माँ दुर्गा के भक्तों को शाक्त सम्प्रदाय के अनुयायी माना जाता है। स्त्री को सर्वोच्च शक्तिशाली मानने वाली इस विचारधारा में, शक्तिस्वरूपा देवी आदिशक्ति को ही ईश्वर की उपाधि प्राप्त है। ऐसा माना जाता है कि जीवन है क्योंकि प्रकृति है और प्रकृति ही देवी है और सिर्फ देवी में ही सृजन की शक्ति है। इस सम्प्रदाय के लोग व्रत और अनुश्ठान में विस्श्वाश रखते है।

श्री दुर्गा भागवतपुराण नामक ग्रन्थ ही इस सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रंथ है। जिसके अंदर ही दुर्गासप्तशती भी आता है। नवरात्रि में हिंदू इसी दुर्गासप्तशती का पाठ करते है।
इस सम्प्रदाय के प्रमुख तीर्थस्थल, काली घाट, कामाख्या मंदिर, पूर्णागिरि, आदि है।

• इश्मात्र सम्प्रदाय 
इस सम्प्रदाय के अनुयायी मनुष्य विभिन्न ग्रंथो का अनुसरण करते है। ये व्यक्ति, किसी एक ईश्वर को न मानकर, सभी ईश्वर में विश्वास रखते है, ऐसे व्यक्ति सम्प्रदायिक भावों से रहित होकर, ईश्वर के सभी स्वरूपों की आराधना करते है। हमारे देश मे अधिकांश लोग इश्मात्र सम्प्रदाय के ही है, भारत के ज़्यादा तर घरों के मंदिर में आपको हर ईश्वर की मूर्ति देखने को मिल सकती है।

• वैदिक सम्प्रदाय
इस सम्प्रदाय में ईश्वर के किसी रूप की आराधना नहीं होती, इस सम्प्रदाय के लोग ईश्वर को निरूप मानते है और ये पूर्णतः वेदों का अनुसरण ही करते है। कबीर दास भी इसी सम्प्रदाय के अनुयायी थे, इनके कई दोहो में ईश्वर के निराकार होने की बात है -
"पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार॥
या
कबीर पाथर पूजे हरि मिलै, तो मैं पूजूँ पहार।
घर की चाकी कोउ न पूजै, जा पीस खाए संसार।।"


इस प्रकार सनातन धर्म के लोग इन 5 सम्प्रदाय का अनुसरण करके, मोक्ष, ईश्वर और ज्ञान प्राप्ति की अपनी यात्रा करते है पर वास्तविक धर्म मानवों का आपसी सहयोग, प्रेम औऱ निश्वार्थ भाव से किया हुआ दान है और वास्तविक सम्प्रदाय मनुष्यता में है और इसी से हमें मोक्ष की प्राप्ति होती है और मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है। यही सनातन धर्म का सत्य है।

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