जब बंगाल में रहने वाली सुचेता कृपलानी उत्तरप्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं, जानें

Savan Kumar
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सुचेता कृपलानी का जन्म पंजाब के अंबाला शहर में संपन्न बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता सरकारी चिकित्सक थे। हर दो या तीन साल में पिता का तबादला होता रहता था, जिसकी वजह से उनकी प्रारंभिक शिक्षा कई स्कूलों में पूरी हुई। उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली भेज दिया गया। दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से उन्होंने इतिहास विषय में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद, वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में संवैधानिक इतिहास की व्याख्याता बन गईं।

शादी और बापू का विरोध

अठाइस साल की उम्र में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्य नेता जेबी कृपलानी से शादी कर ली। सुचेता के इस कदम का उनके घर वालों के साथ महात्मा गांधी ने भी विरोध किया था। जेबी कृपलानी सिंधी थे और उम्र में सुचेता कृपलानी से बीस साल बड़े थे।


देशभक्ति का पाठ

सुचेता कृपलानी ने देशभक्ति का पाठ बचपन में ही पढ़ लिया था। दरअसल, उनके पिता चिकित्सक के साथ देशभक्त भी थे। उन्होंने खुद को राष्ट्र की सेवा और स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया था। पिता की इसी भावना ने सुचेता के मन में देशभक्ति जगाई थी। हालांकि आचार्य कृपलानी ने सुचेता को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया था। उन्होंने ही सुचेता कृपलानी का परिचय महात्मा गांधी से कराया था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने के बाद अरुणा आसफ अली और अन्य महिला नेताओं के साथ 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सुचेता कृपलानी सबसे आगे रहीं। उन्हें कांग्रेस पार्टी के महिला विभाग की पहली प्रमुख होने का श्रेय भी जाता है।

उपलब्धियां

सुचेता कृपलानी उन चंद महिलाओं में शामिल थीं, जिन्होंने बापू के करीब रह कर देश की आजादी की नींव रखी। वे नोआखली यात्रा में बापू के साथ थीं। आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिए उन्हें जेल की सजा भी हुई। 1946 में उनका चुनाव संविधान सभा के सदस्य के रूप में हुआ। 1949 में सुचेता कृपलानी को संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रतिनिधि के रूप में चुना गया था। सुचेता कृपलानी 1952 में हुए पहले आम चुनाव में नई दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र से निर्वाचित हुई। उन्होंने लघु उद्योग राज्यमंत्री के रूप में कार्य किया। पांच साल बाद उन्हें उसी निर्वाचन क्षेत्र से फिर चुना गया।

मील का पत्थर

1962 में सुचेता कृपलानी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा। वे कानपुर निर्वाचन क्षेत्र से चुनी गईऔर उन्हें श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाया गया। बाद में उसी साल उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया। 1967 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़ कर जीत हासिल की। 1971 में सुचेता कृपलानी ने राजनीति से संन्यास ले लिया।

जीवन के अंतिम साल

राजनीति से सन्यास लेने के बाद सुचेता कृपलानी अपने पति के साथ दिल्ली में बस गई। निस्संतान होने के कारण उन्होंने अपना सारा धन और संसाधन लोक कल्याण समिति को दान कर दिया। इसी समय, उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘एन अनफिनिश्ड ऑटोबायोग्राफी’ लिखनी शुरू की, जो तीन भागों में में प्रकाशित हुई। धीरे-धीरे उनका स्वास्थ्य गिरता गया और 1974 में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया।



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