...यू तो आमतौर पर चीन से हर रोज खबरे आती रहती है, इन दिनों में तो कोरोना वायरस हो या फिर भारत-चीन विवाद इस कारण चीन पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है, चीन में कम्यूनिस्ट पाटी का राज है जो एक तरीके से तानाशाह की तरफ की काम करती है, वैसे तो आपके उत्तर कोरिया के तानाशाही किम जोंग के बारे में खूब सुना होगा लेकिन आज हम आपको बतायेगें कि चीन में पहले ही एक पार्टी का एकतरफा राज हो लेकिन वो भी किसी तानशाह से कम नहीं है।
चीन
में एक के बाद एक संस्थानों पर कम्यूनिस्ट पाटी का कब्जा होता जा रहा है और इस के
सुप्रीम लीडर वो है जो इस वक्त चीन के राष्ट्रपति भी है और उनका नाम शी
जिनपिंग....
चीन में वैसे तो लोकतंत्र नहीं है ना ही चीन की वर्तमान सरकार लोकतांत्रिक समर्थक है चीन में भारत और अमेरिका की तरफ कोई विरोध नहीं कर सकता, चीन की आर्मी तक अब सिर्फ एक पार्टी की होकर रह गई है। चीन से निकला कोरोना दुनिया में तबाही मचा रहा है तो वहीं चीन अभी अपने घर में कोरोना को नियत्रित कर दुनिया की तबाही का आनंद ले रहा है।
हाल ही चीन से एक खबर ये भी आयी
कि चीन की शी जिनपिंग के नेतृव्य वाली कम्यूनिट पार्टी चीन के सबसे बड़े रिसर्च सेंटर द इंस्टीट्यूट ऑफ
न्यूक्लियर एनर्जी सेफ्टी टेक्नोलॉजी (आईनेस्ट) पर कब्जा करने में लगी है खबर आयी कि इस सेंटर से 23
जुलाई को 90 परमाणु वैज्ञानिकों ने इस्तीफा दे
दिया। करीब 500 सदस्यों के साथ काम कर रही इस
संस्था में पिछले साल 200 वैज्ञानिकों के इस्तीफे
के बाद यहां 100 से भी कम लोग रह गए है। हालात ये
है कि इसका संचालन भी अब बड़ी मुश्किल से हो पा रहा है।
वैज्ञानिकों के इस्तीफे जो सबसे प्रमुख
आरोप है वो चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी इस संस्थान पर पूर्ण रूप से अपना
कब्जा जमाना चाहती है। इसके अलावा यहां वैज्ञानिकों को न तो जरूरी संसाधन उपलब्ध
करवाये जा रहे है और ना ही सुविधाएं दी जा रही हैं साथ ही जो काम हो रहा है उसमें
भी सरकार की दखलअंदाजी है...
चीन की विस्तारवादी नीति के खिलाफ अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया समेत कई देश एकजुट होकर चुनौती पेश कर रहे हैं। ऐसे में हमले की स्थिति में चीन के राष्ट्रपति के पास परमाणु हमले के आदेश देने का अधिकार भी नहीं है। ये अधिकार अभी पार्टी के पोलित ब्यूरो के पास है। चीन के कई थिंक टैंक मानते हैं कि शी जिनपिंग दो मोर्चों पर लड़ रहे हैं। देश के अंदर और देश के बाहर। विश्वमंच के खिलाफ मोर्चा लेने के लिए वे देश के अंदर भी अपनी सीमाओं का अतिक्रमण कर बैठते हैं। वैज्ञानिकों का इस्तीफा इस तरह के दबाव का ही नतीजा है।
चीन
चाहता है कि विदेशों में रहकर जो चीनी वैज्ञानिक दूसरे देशों के लिए काम कर रहे है
वे वापस चीन लौट जाए इसी वजह से 2019 में अमेरिका और यूरोप में काम कर रहे चीन के
16 हजार वैज्ञानिक वापस स्वदेश लौट आए कम्यूनिस्ट पाटी ने वैज्ञानिकों को भरोसा
दिलाया था कि वे उन्हें सारी सुविधाएं उपलब्ध करवाएंगे जो उन्हें चाहिए लेकिन जो
वैज्ञानिक स्वदेश लौटे है उनको भ्रम अब टूट गया है। चीन की सरकार सिर्फ उन पर अपना
अधिकार चाहता है ताकि जो सरकार को उनसे चाहिए वो मिल सकें।
वैसे तो चीन की लड़ाई दुनिया के बहुत से देशों से है भारत-चीन का सीमा विवाद हो या फिर साउथ चाइना सी पर अमेरिका और उनके सहयोगियों का टकराव, हाल ही में भारत-चीन के बीच गलवान घाटी में जो विवाद हुआ उसमें भारत के 20 जवानों शहीद हुए लेकिन चीन को कितनी हानि हुई इसका पता नहीं लग सका, ऐसा माना जाता है कि चीन अपने देश से कोई भी नेगिटिव चीज बाहर नहीं आने देता ऐसी भी खबरें आय़े थी कि जो चीन के सैनिक मारे गए है उनके परिवार वालों ने भारत में शहीदों को जो सम्मान मिला था उसी तर्ज पर वो भी अपने शहीदों जवानों के लिए सम्मान की मांग कर रहे थे, लेकिन ये भी चीन ने होने नहीं दिया। चीन की कम्यूनिट पाटी लोकतंत्र विरोधी पाटी है और वो कभी नहीं चाहती कि चीन में लोकतंत्र की आवाजें उठे।
आम तौर पर गोपनीयता के लबादे में लिपटी चीन
की क्म्यूनिस्ट पार्टी हर पाच साल में एक कांफ्रेस का आयोजन करती है इस कॉफेंस को
कांग्रेस का नाम दिया गया है। यह एक अहम आयोजन होता है, चीन
पर 68 साल से राज कर रही कम्युनिस्ट पार्टी ने कई
उतार चढ़ाव देखे हैं, लेकिन इसकी ताकत में लगातार इजाफा
होता रहा है, पार्टी कांग्रेस में क्या क्या होता है, इसकी पक्की जानकारी आज भी मिल पाना बेहद ही मुश्किल है।
इसी कांग्रेस में 2007 में हुई 17वीं पार्टी कांग्रेस शी जिनपिंग और ली कचियांग को सीधे नौ सदस्यों वाली
पोलित ब्यूरो की एलिट स्थायी समिति का सदस्य बनाया गया था जबकि उस समय वह पार्टी
के 25 सदस्यों वाले पोलित ब्यूरो के सदस्य नहीं थे,
वही शी जिनपिंग वर्तमान में चीन के राष्ट्रपति है जबकि ली कचियांग
चीन के प्रधानमंत्री है।




