चीन और पाकिस्तान परस्त कश्मीरी नेताओं से राजनीतिक संवाद करने की क्या जरूरत?

Savan Kumar
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जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने और निर्वाचित प्रतिनिधियों को राज्य की सत्ता सौंपने के उद्देश्य से 24 जून को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक हो रही है। इस बैठक में फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस, महबूबा मुफ्ती की पीडीपी, कांग्रेस आदि दलों के प्रतिनिधियों को बुलाया गया है। यानी अनुच्छेद 370 के समाप्त होने के बाद जिन नेताओं ने गुपकार संगठन बनाया था, वे नेता भी प्रधानमंत्री के साथ बैठक में उपस्थित रहेंगे

सवाल उठता है कि चीन और पाकिस्तान परस्त कश्मीरी नेताओं से राजनीतिक संवाद करने की क्या जरूरत है? क्या ऐसे नेताओं ने अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले पर सहमति प्रकट कर दी है? सब जानते हैं कि नजरबंदी से मुक्त होते ही फारुख अब्दुल्ला ने कहा था कि 370 की बहाली के लिए यदि जरूरत हुई तो चीन से भी मदद ली जाएगी। इसी प्रकार महबूबा मुफ्ती ने पाकिस्तान से संवाद करने की अपनी पुरानी मांग पर कायम हैं।

क्या प्रधानमंत्री को यह लगता है कि फारुख और महबूबा जैसे नेता सर्वदलीय बैठक में आकर अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले पर मुहर लगा देंगी? उल्टे दिल्ली आकर ऐसे नेता अपने विचारों का प्रचार ही करेंगे। मीडिया के कैमरे 24 जून को श्रीनगर के एयरपोर्ट से लेकर दिल्ली के एयरपोर्ट तक तो लगे ही रहेंगे, साथ ही दिन भर न्यूज चैनलों पर बैठक को लेकर समीक्षा होती रहेगी। सवाल यह भी है कि आखिर जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने की इतनी जल्दी क्या है? जो लोग चीन और पाकिस्तान परस्त हैं, उनके लिए लोकतंत्र कोई मायने नहीं रखता है। ऐसे नेताओं का बस चले कि हमारे जम्मू कश्मीर पर चीन और पाकिस्तान का कब्जा करवा दें।

अनुच्छेद 370 के हटने के बाद पता चला कि अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवारों ने अपने अपने शासन में किस तरह लूट की। सवाल उठता है कि क्या ऐसे लुटेरों को फिर सत्ता सौंप दी जाएगी? सब जानते हैं 370 हटने के बाद आम कश्मीरी खुश हैं। उसे रोजगार मिला है तो अधिकारों में वृद्धि हुई है। केन्द्र सरकार की पहली प्राथमिकता देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने की होनी चाहिए।

खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जानते हैं कि कितनी परेशानी के बाद जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया गया है। अब जब कश्मीर के लोग समृद्ध हो रहे हैं, तब एक बार फिर पुराने लुटेरों से राजनीतिक संवाद किया जा रहा है। हो सकता है कि प्रधानमंत्री जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र की बहाली का दबाव हो, लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि लोकतंत्र देशभक्त लोगों के बीच अच्छा लगता है।

जो लोग अभी भी दुश्मन देश चीन और पाकिस्तान समर्थक हो उनके सामने लोकतंत्र परोसना खतरनाक होगा। पूरे देश ने देखा है कि अब्दुल्ला और मुफ्ती के परिवारों के शासन में किस तरह केंद्रीय सुरक्षा बलों को निशाना बनाया गया। अब बड़ी मुश्किल से स्थितियां नियंत्रण में आई हैं, ऐसी स्थितियां बनी रहनी चाहिए।


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