कोरोनावायरस की दूसरी लहर भारत के लिए कई मुसीबतें लेकर आई। इस दौरान जहां कई लोगों की जान चली गई और शवों को नदियों में फेंके जाने की तस्वीरें सामने आईं, वहीं दूसरी तरफ भारत अपनी कई अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों से भी चूक गया, जहां भारत के टीके के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले ने 'कोवैक्स कार्यक्रम' को धीमा कर दिया, वहीं बांग्लादेश जैसे पड़ोसी भी बहुत परेशान हुए।
वैक्सीन निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के भारत के फैसले के बाद, बांग्लादेश ने अप्रैल के अंत में अपने लोगों को कोवशील्ड की पहली खुराक देने पर प्रतिबंध लगा दिया। जिसके बाद चीन ने उन्हें लाखों टीके उपहार में दिए और अब बांग्लादेश भी चीन से वैक्सीन खरीद रहा है। बांग्लादेश में नए टीके के तौर पर अब लोगों को 'साइनोवैक' ही दिया जा रहा है।
अब सवाल यह है कि क्या भारत, जो इस समय कई समस्याओं का सामना कर रहा है, क्या अपने पड़ोसियों के साथ अपने संबंधों को फिर से सामान्य कर पाएगा? भले ही भारत को 17 वर्षों के बाद विदेशी सहायता स्वीकार करनी पड़ी हो, लेकिन भेजी गई बड़ी मात्रा में सहायता से पता चलता है कि दुनिया यह मान रही है कि भारत को अनदेखा करना मुश्किल है।
लेकिन दूसरी तरफ यह भी संदेह है कि जब तक वह फिर से अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता, तब तक पश्चिमी दुनिया के किसी काम का नहीं होगा। महामारी के चलते नई दिल्ली के दक्षिण एशियाई क्षेत्र की बड़ी ताकत और नेता होने के दावे को बड़ा झटका लगेगा। इसका असर आने वाले सालों में भारतीय विदेश नीति पर भी पड़ेगा।
पड़ोसी देशों को भारत से मदद लेने का रवैया छोड़ना होगा
दक्षिण एशिया में सबसे बड़ा देश होने के नाते, भारत पड़ोसी देशों को परेशानी में मदद कर सकता है और इस क्षेत्र के देशों के साथ ऐतिहासिक संबंधों के कारण राजनीतिक प्रभाव भी डाल सकता है। लेकिन पड़ोसियों की मदद करने की इसकी क्षमता भी काफी प्रभावित हुई है। ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि पड़ोसी देशों के साथ ऐतिहासिक संबंध अपनी जगह बचा पाएंगे।
जानकारों का मानना है कि भारत ने अपनी छवि इस तरह से कायम रखी थी कि वह अपने पड़ोसियों की भी वैक्सीन की जरूरतों को पूरा कर सके। शुरुआत में उन्होंने ऐसा किया भी। लेकिन फिर उसने अपने पड़ोसियों को अधर में छोड़ दिया। ऐसे में भारत की छवि धूमिल हुई है। भारत इस समय घरेलू दबाव में है लेकिन भारत जल्द ही कूटनीतिक वापसी करेगा। पड़ोसी देशों को भी यह रवैया छोड़ देना चाहिए कि उनके लिए हर सुविधा लाकर दी जाए।
चीन पहले से ही अपनी आर्थिक सहायता रणनीति के माध्यम से भारत को भारतीय उपमहाद्वीप तक सीमित करने की कोशिश कर रहा था। कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने इस प्रक्रिया को तेज करने का काम किया है, चीन का दृष्टिकोण अलग रहा है, जिस तरह से वह भारी कर्ज देकर और बुनियादी ढांचे का निर्माण करके दूसरे देशों के साथ संबंध बनाता है, भारत और अमेरिका ऐसा नहीं कर सकते।
क्या क्वाड में भारत का प्रभाव कम होगा ?
कोरोना ने भारतीय अर्थव्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। जिससे भारत की सेना के आधुनिकीकरण की योजना भी प्रभावित हुई है। जबकि उत्तरी सीमा पर चीन की आक्रामकता को नियंत्रित करने के लिए यह जरूरी था। इसका भारत की वैश्विक कूटनीति और स्थानीय भू-राजनीति पर भी असर होना तय है।
भारत ने तीन अन्य बड़े देशों अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ मिलकर चीन को नियंत्रित करने के लिए 'क्वाड' नाम का एक संगठन बनाया। इस समय भारत पर जो दबाव है, वह भी इस संगठन के प्रभाव को कम कर सकता है। जानकार कहते है कि क्वाड का भौगोलिक महत्व है और भारत को अपनी भू-राजनीतिक स्थिति का लाभ निश्चित रूप से मिलेगा।
ऐसा नहीं है कि भारत के लिए सभी स्थितियां नकारात्मक हैं। गंभीर संकट अपने साथ अवसर लेकर आते हैं। भारत भी इस संकट को अवसर के रूप में भुना सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना की पहली लहर के दौरान सार्क देशों ने आपसी सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया था। आपसी सहयोग से भारत पूरे दक्षिण एशिया में स्वास्थ्य सेवाओं की एक मजबूत प्रणाली बनाने का प्रयास कर सकता है। ताकि ऐसे स्वास्थ्य आपातकाल से मजबूती से लड़ा जा सके। भारत को भविष्य की भू-राजनीति को स्वास्थ्य कूटनीति, पर्यावरणीय मुद्दों और स्थानीय संचार से जोड़कर विकसित करना चाहिए।
भारत की छवि को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने होगें
स्वास्थ्य उन प्रमुख मुद्दों में से एक है जो सार्क देशों के बीच सहयोग का आधार रहा है। यह सच है कि पिछले कुछ वर्षों में इस पर उतना जोर नहीं दिया गया है। लेकिन दक्षिण एशियाई क्षेत्र में स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे के निर्माण का यह सही समय हो सकता है। इसके लिए हर देश के साथ भारत की सीमा पर एक एक्सक्लूसिव मेडिकल जोन (ईएमजेड) बनाया जाए, जहां पड़ोसी देशों के नागरिक आकर अपना इलाज करा सकें, इसके लिए उन्हें जैसे शहरों में आने की जरूरत नहीं है। दिल्ली और मुंबई न आकर वे वहां से इलाज कराकर वापस चले जाए। भारत की छवि को मजबूत करने की दिशा में यह कदम महत्वपूर्ण होगा।
भारत को इस आपदा को अवसर के रूप में फायदा लेना चाहिए
कुछ और विशषेज्ञों का मानना है कि भारत को पहले अपनी घरेलू क्षमता निर्माण पर ध्यान देना चाहिए। उसकी ताकत के बाद ही पड़ोसियों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, जब तक भारत उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे अपने राज्यों की जरूरतों को पूरा करने के लिए काम नहीं करेगा, तब तक कोई भी दक्षिण एशियाई देश अपनी जरूरतों के लिए भारत पर आंख मूंदकर भरोसा नहीं कर पाएगा।
लेकिन एक डर यह भी है कि जैसे-जैसे चीन हिंद-प्रशांत में अपना प्रभाव बढ़ाता जा रहा है, क्या भारत अपना ध्यान केवल घरेलू समस्याओं तक ही सीमित कर सकता है। हालांकि, कम औद्योगिक उत्पादन और कोरोना के कारण बढ़ती बेरोजगारी के बीच भारत के पास अपनी रणनीतिक महत्वाकांक्षाओं को सीमित करने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।
चीन ऐसी स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश कर सकता है। चीन इस समय कुछ भी गलत नहीं करेगा क्योंकि गलवान विवाद के बाद से ही भारत उसके खिलाफ काफी आक्रामक रहा है, चीन की आक्रामकता के अलावा भारत पर बाइडेन प्रशासन के तहत अमेरिका के साथ संबंधों को नई दिशा देने का भी दबाव है।
जाहिर है कोरोना महामारी के बाद भारतीय विदेश नीति में काफी बदलाव होंगे। लेकिन जानकारों को इसमें भी उम्मीद की किरण नजर आ रही है, उनके अनुसार दक्षिण एशिया दुनिया के ऐसे क्षेत्रों में शामिल है, जो अब तक सबसे कम एकीकृत हुए हैं और कोरोना महामारी इसके लिए एक बड़ा अवसर पेश कर रही है। भारत चाहे तो इसकी शुरुआत कर सकता है।
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